क्लीनचिट - 1 Vijay Raval द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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क्लीनचिट - 1

अंक- प्रथम

पांच जून सेटरडे की नाईट थी. वक़्त होगा तकरीबन रात के १:३० के करीब.
शहर से बारह किलोमीटर दूर बर्थ डे बॉय आलोक अपने जिगरजान दोस्त शेखर के फार्म हाउस पर अपने सब दोस्तों के साथ पार्टी में मशगुल था. धमाकेदार लाइव डी, जे की ताल पर सब अपनी अपनी अनूठी अदा से ज़ूम ज़ूमके पार्टी का मज़ा लुट रहे थे और कल सन्डे था तो पहेले से सर्वसमंती से तय किये हुए फैसले के मुताबिक पार्टी सुबह तक चलने वाली थी. थोड़ी देर बाद अचानक आलोकने शेखर को एक तरफ बुला कर कहा.

‘ सुन, मैं घर जा रहा हु.’

यु अचानक ही चलती हुई पार्टी के बीच में से जाने की बात सुन कर आश्चर्य से शेखर ने पुछा.
‘अरे.. पर क्यूँ ? अरे यार आज तेरा जन्मदिन है. तेरे लिए तो इतनी शानदार पार्टी का इंतजाम किया है. जरा देख तो सही सब कितने खुश है.
और अभी तो ठीक तरह से पार्टी की शुरुआत भी नहीं हुई और तू इस तरह अचानक से पार्टी छोड़ के चले जाने की बात कर रहा है तो सब का मूड ऑफ हो जायेगा यार. क्या हुआ तूझे यूँ अचानक से ? तबियत तो ठीक है न तेरी ?

‘तबियत तो ठीक है पर पता नहीं अचानक से कुछ अजीब सी फिलिंग आ रही है.

‘किसी ने कुछ बोला ? कुछ हुआ है क्या ?
‘ नहीं शेखर, पर अभी पार्टी छोड़ के जाने का मन कर रहा है. सोरी यार’

अचानक से आलोक का बिना कोई ठोस वजह और बेहूदे बर्ताव से शेखर को काफी बुरा लगा पर उसको लगा की ये वक़्त बहस करने का नहीं है. ये सोच के बोला.

‘ठीक है. एसा कर तू अपनी बाइक यहाँ रहेने दे और मेरी कार ले के चला जा वो ठीक रहेगा.’

‘नहीं नहीं में पूरी तरह ठीक हू. तुम चिंता मत करो. मैं बाइक ले के ही चला जाता हूँ.’

थोड़ी देर शेखर से बात करने के बाद सब को बाय बोल के आलोक निकल गया.

सब दोस्तों को आश्चर्य हो रहा था. इसलिए शेखरने सब को समजा दिया की उस की तबियत थोड़ी सी नर्म है इसलिए चला गया है. ऐसा बोल के थोड़ी देर में सब को वापिस संगीत की धुन पे फिर से महेफिल के मूड में ले आया.

आलोक धीरे धीरे अपनी बुलेट को चला के हाइवे से शहर की ओर आ रहा था. अभी उनके फ्लेट की दुरी पांच या सात किलोमीटर होगी तब अचानक से हल्की सी बरसात शुरू हुई जो देखते ही देखते इतनी तेज़ बारिश में बदल गई की अब बाइक चलाना भी मुश्किल हो गया था. और फिर थोड़ी देर बाद तो बाइक बंध ही हो गई. उसके बाद आलोक ने काफी महेनत की बाइक स्टार्ट करने की पर विफल रहा.

बड़ी मुश्किल से बुलेट को काफी महेनत से घसीटते हुए रोड के किनारे एक बड़े से पीपल के पेड़ के पास एक नन्ही सी जोंपड़ी आड़ में बुलेट पार्क कर के लोक कर दिया. अब आलोक पूरी तरह भीग चुका था. २४ साल का हट्टा कट्टा नौजवान और ऊपर से जून महीने की गर्मी का मौसम. इतनी तेज़ बारिश में भीगने के बाद भी वो स्वस्थ था. उसको बारिश में भीगना बहोत ही अच्छा लगता था पर इस वक्त घर पहोंचना ज्यादा जरुरी था.
इसलिए आलोक रोड के किनारे खड़े होके शायद कोई लिफ्ट मिल जाए उसकी आश में कोशिश की पर सब नाकाम रही. रात के दो बजे का वक्त, सुमसान हाइवे और ऊपर से तेज़ बारिश. अब आलोक को लगा की शायद ही कोई चमत्कार हो जाये. बारिश अभी भी उसी तेज़ रफ़्तार से गिर रही थी.

तक़रीबन आधे घंटे के बाद एक बाइक चालक ने आलोक से दस मीटर आगे जा के अचानक जोर से ब्रेक लगा के बाइक को रोका. उसने आलोक की और इशारा किया. फिर आलोक दौड़ के बाइक की बेक सीट पे बैठ गया. उस व्यक्तीका पूरा शरीर एक लम्बे से रेइनकोट से ढका हुआ था और हेलमेट भी पहेने हुआ था तो उसकी वजह से ठिकसे पता नहीं चल रहा था की कोई मर्द है या औरत.

ठीक पन्द्रह मिनिट के बाद एक चौराहे पर उस व्यक्तीने बाइक को रोका. अभी आलोक बाइक से उतर के उसका शुक्रिया अदा करने की कोशिष कर रहा था तब तक तो वो व्यक्ति तेज़ी से बाइक चला कर निकल गया. ये देख के आलोक अजीब सा लगा और सोचता ही रहे गया. अब बारिश भी थम चूकी थी. आलोक अब ऐसी जगह पर था जहा से उसे कोई ओटो या टेक्सी मिलना आसान था.
आखिर में पन्द्रह मिनिट के बाद ओटो मिल भी गया.
फ्लेट पे आके फ्रेश होकर चेंज कर के शेखर को फोन पे सब बात बताई. बाइक का लोकेशन दिया. शेखर ने बोला डोन्ट वरी. बाइक कल दोपहर तक ठीक होके घर पहोंच जायेगा.

फिर.. बाद में जब बेडरूम में सोने की लिए आकर देखा तब वोल्क्लोक ३:३५ का वक्त दिखा रही थी. आलोक देर तक उस व्यक्ति के बारे में सोचता रहा. पिछले कई दिनों से काफी हद तक संतुलित होने जा रहा अतीत के अतुल्य हादसे का चक्र आज फिर से गतिमान हुआ था.२९ अप्रैल के वो यकायक हादसे की एक एक तस्वीर किसी फिल्म के द्रश्य जैसे उनकी आँखों के आगे आने लगी. धीरे धीरे खयालो के भंवरमें डूब के गहेरी नींद में चला गया.

२७ साल का शेखर वर्मा

मनमौजी, दिलदार, मस्ती भरा और यारो का यार .हरदम जिंदादिल लगता शेखर आलोक का दिलोजान दोस्त था. उन दोनों की दोस्ती को देख के किसी भी अनजान आदमी को ऐसे लगता था से की दोनों सगे भाई है.
असल में शेखर गुजरात के कच्छ जिल्हे का रहेवासी था. उनका परिवार बरसो पहेले बंगलुरु शिफ्ट हो गया था. एक जानलेवा बिमारी में कुछ ही दिनों में उनके पिताजी का निधन हो गया था. उस वक्त शेखर की आयु सिर्फ ११ साल की थी. बी कोम में ग्रेज्युएशन करने के बाद अपने खानदानी पेशे से जुड़ गया. बरसो से उनके परिवार का ट्रांसपोर्ट और ट्रेवल्स का बहोत बड़ा कारोबार था. उनके चाचा और परिवार के सब लोग मिलाके ११ सद्स्य एक साथ शहर के रईसी इलाके में आये एक बड़े से बंगले मे रहेते थे.

आलोक जिस कंपनी में जॉब करता था उसी कम्पनी में शेखर की ट्रांसपोर्ट कंपनी का बरसो से कोंट्रेक चल रहा था. उन दोनों की पहेली मुलाकात उसी कंपनी में हुई फिर परिचय हुआ. दोनों के विचार मिले. धीरे धीरे दोनों एक ऐसे गहेरे रिश्ते में बंध गए की आज सिर्फ एक महीने के छोटे से अन्तराल के बाद आलोक, शेखर की फेमिली का एक सदस्य बन गया था.

आलोक देसाई.

इन्द्र्वदन और सरोज देसाई दंपति की इकलौती औलाद. इन्द्र्वदन देसाई सौराष्ट्र के एक छोटे से ग़ाव में २७ साल से प्रायमरी स्कुल में क्लर्क की नौकरी कर रहे थे. बिक्लुक शांत और सहज स्वभाव के धनी थे. और
उनकी पत्नी का स्वभाव उनसे भी ज्यादा शांत प्रकृति का था. फुर्सत का वक्त वो धर्म ध्यान और निस्वार्थ सेवा संस्थानों में बिताते थे. प्रभु भक्ति और सेवा उनके जीवन का मूलमंत्र था. उन की इस साफ़ सुथरी छवि के कारन ग़ाव में शायद ही उनके नाम से कोई अनजान होगा.

आलोक अपनी माँ का काफी लाडला था. प्राथमिक शिक्षा वहां से प्राप्त की जिस पाठशाला में उनके पिताजी क्लर्क थे. पढने और खेद्कुद में हंमेशा अव्वल आने की वजह से आलोक की पढाई की रूचि को ध्यान में रखते हुए दोनों ने आगे की शिक्षा के लिए बडौदा की एक नामी अंग्रेजी माध्यम की शिक्षण संस्थान में उसे दाखिला दिलाने के विचार को अमल में रखा. उस वक्त अलोक की उम्र १३ साल थी. जिस दिन हॉस्टल में छोड़ने आये उस दिन सरोजबहन काफी रोए थे. पहेली बार दोनों आलोक से अगल हो रहे थे.
काफी दिनों तक आलोक को माता-पिता का सुनापन खलता रहा आलोक भी उन दोनों की मनोस्थिति का भली भांति अनुमान लगा सकता था. आलोक ने मन ही मन में एकलव्य की तरह गांठ बांध ली की उनके माता- पिता का कठोर परिश्रम और सपने बिलकुल व्यर्थ नहीं जायेंगे. उसके बाद कड़ी महेनत और संघर्ष को उसने अपना गुरुमंत्र बना लिया.

बस वो घड़ी और आज का दिन. ठीक एक महीने पहेले गुजरात की नंबर वन यूनिवर्सिटी से इन्फ़ोर्मोएशन टेक्नोलोजी में टॉप रेंक से मास्टर्स की डिग्री हांसिल कर के आज बंगलुरु में स्थित एक जर्मन कंपनी में एक अच्छे से होद्दे पर महीने के छे अंको वाली तनखा के साथ जॉब कर रहा था.

आलोक स्पष्ट वक्ता, खुल्ले विचारो वाला, आत्मविश्वाश से भरपूर,कसा हुआ बदन, ५.९ फिट की हाईट, सपूर्ण रूप से बोलीवुड स्टार मटीरियल,
एडवेंचर का बेहद शोख, ट्रेकिंग, कार रेस, और सुबह, शाम दोनों वक्त नियमित रूप से जिम जाना कभी नहीं चुकता था. स्वास्थ्य के लिए वो हमेशां सतर्क रहेता था.


यूनिवर्सिटी में वो फुटबोल टीम का कप्तान रह चूका था. चेस की गेम का भी वो मास्टर था. आलोक को खरे और पारदर्शक बाते करने वाले की दोस्ती अच्छी लगती थी. कालेज में उनकी एक अनूठी और सन्मान जनक छवि को ध्यान में रखते हुए लड़के और लड़की दोनों फ्रेंड्स के साथ उनके अंगत और सार्वजनिक सम्बन्ध को संतुलित रखने में वो हमेशां सतर्क रहेता था. और लड़कीयो के साथ घुलने मिलने में थोडा सा संकोच भी महेसुस करता था.

पिछले पांच साल जीस कालेज में गुज़ारे अब उस कालेज से विदा लेने की घड़ी आ गई थी. जिंदगी का कभी न भूलने वाला एक सुनहरा अंक अब समाप्त होने के कगार पर था.

पांच साल पहेले जब आलोक ने एक फ्रेशनर के तौर पर कालेज में दाखिला लिया था तब उनको ये अंदाज़ा नहीं था की आई.टी. फेकल्टी के इतिहास में आलोक देसाई का नाम इतनी ऊंचाई से तक जुड़ जायेगा. कालेज में उनकी लोकप्रियता के पीछे उनकी कड़ी महेनत तो थी ही, पर उनके साथ साथ खास वहज थी उनकी विनम्रता. पर वो इस यश और कीर्ति का तमाम श्रेय हमेशां अपने माता- पिता को ही देता था.

आज से ठीक एक महीने पहेले हुए वो कभी न भूलने वाले खुबसूरत हादसे के एक एक शब्द आज भी आलोक के स्मरण अंकित में है .२९ अप्रैल शुकवार. अगले दिन शनिवार कालेज का अंतिम दिन था.

२९ अप्रैल

सुबह, तक़रीबन ११:४५ का वक्त होगा. आलोक कालेज केम्पस के गार्डन की और जा रहा था. तभी पीछे से किसी लड़की ने आवाज़ दी.

‘हेल्लो.. मिस्टर.’
‘आलोक ने पीछे मूड के देखा. कुछ पल के लिए आलोक देखता ही रह गया.
कालेज केम्पस में ये चहेरा उसने पहेली बार देखा था. एक्टिवा पर अंदाजन २० या २२ साल की साधारण लडकियों की हाईट से थोड़ी लम्बी एक खुबसूरत जवान लड़की. घुटनों तक की लम्बाई वाली ऑफ़ व्हाइट कलर की जिन्स के ऊपर नेवी ब्ल्यू कलर का टी-शर्ट, कंधे पे लेटेस्ट डिज़ाइन का लाईट पिंक कलर का साइड बेग, गोगल्स और कान में इयरफोन.

तो इस तरफ स्पोर्ट्समेन जैसा कसा हुआ शरीर,५.९ फिट की हाईट, लेटेस्ट हेअर स्टाइल,पल में मंत्रमुग्ध कर देने वाली उनकी आँखे, स्काय ब्लू जिन्स के उपर मरून टी-शर्ट में आलोक का लुक देखते ही बनता था.

‘उसने गोगल्स उतार के आलोक से पूछा,
‘गुड मोर्निंग, केन यु हेल्प मी.’
‘आलोक ने कहा. ‘वेरी गुड मोर्निंग, जी कहिये.’
उसने शेकहेंड के लिए आलोक के सामने हाथ बढ़ाते हुए कहा.
‘हाई, आई एम् अदिती, अदिती मजुमदार.’
अदिती ने बाइक को ऑफ करते हुए पूछा,
‘क्या में आप का शुभ नाम जान सकती हूँ ?
‘आलोक, आलोक देसाई.’
‘मिस्टर आलोक... अदिती अपनी बात खत्म करे उस से पहेले आलोक बोला
‘सिर्फ आलोक कहिए...चलेगा.’
‘ओ.के. धेट्स गुड. ये मुझे अच्छा लगा. वैसे भी मुझे हर वक़्त डिसिप्लिन का चौला पहन के मुह पे प्लास्टिक स्माइल लगा के औपचारिकता से बाते करना बिलकुल ही अच्छा नहीं लगता. में इस यूनिवर्सिटी में फर्स्ट टाइम आई हूँ. और मेरे पास वक्त बहोत कम है तो आप मेरी छोटी सी हेल्प करेगें क्या ?
‘अगर मुमकिन होगा तो जरुर करूँगा.’ आलोक ने उत्तर दिया.
‘में इंजीनियरिंग फेकल्टी में एडमिशन की जानकारी के लिए आई हूँ. मुझे लगता है की केम्पस काफी बड़ा है. तो आप मेरे साथ आ सकते है क्या ?’
थोड़ी देर सोचने के बाद आलोक बोला,’ ठीक है चलिए.’
‘थेंक यु आलोक.’
‘वेलकम.’
गोगल्स पहेनते हुए अदिती ने कहा, ‘ अगर आप को कोई दिक्कत न
हो तो आप ही बाइक चला लीजिये.’
आलोक ने बाइक स्टार्ट की और अदिती पीछे बैठ गई
‘आर यु कम्फर्टेबल ?’ आलोक ने पूछा.
अदिती बोली,
‘ओह यस. जहा तक मुमकिन था वहा तक ज्यादा से ज्यादा यूनिवर्सिटी की साईट पे जाके मैंने सब छान मारा है. फिर सोचा की एक बार खुद जा के बेज़िक फोर्मालिटीस के बारे में जान लेना उचित होगा.
‘ये आपने ठीक किया.’ आलोक ने जवाब दिया
‘५ या ७ मिनिट के बाद एडमिशन डिपार्टमेंट के ठीक सामने बाइक स्टॉप करके अलोक बोला, ‘सामने की बिल्डिंग में सेकण्ड फ्लोर पर ऑफिस है.
एक हल्के से स्मित के बाद आलोक से हाथ मिलाके फिर से आलोक का शुक्रिया अदा किया.
‘इट्स माय प्लेज़र, हेव ए नाईस डे.बाय.’ बोल के आलोक लायब्रेरी की ओर चलने लगा.

एडमिशन डिपार्टमेंट से सब इन्फोर्मेशन इकठ्ठा कर के अदिती पार्किंग में रखी अपनी बाइक पर बैठी. घड़ी में नजर डाली तो १:१५बजे थे. टेम्प्रेचर ४४ डिग्री था. गर्मी भी सख्त थी और कड़ी भूख लगी थी तो केंटिन का लोकेशन पता कर के बाइक उस तरफ ले गई.

सेंट्रली ए.सी. केंटिन में दाखिल होते ही उसने चैन की सांस ली. लंच टाइम था तो ९०% टेबल्स भरे हुए थे. पूरी केंटिन पर एक नजर दौडाते हुए लगा की केश काउंटर के सामने वाले छोर की आखरी कोने में एक टेबल पर एक ही आदमी बैठा हुआ दिखाई दिया तो सोचा की वहा आराम से बैठ सकती थी. सेल्फ सर्विस काउंटर से एक फुल साइज़ केपेचिनो कोफ़ी का कप और एक पनीर मखनी पित्ज़ा ले के जैसे ही टेबल पर बैठ के देखा तो उसी टेबल पर सामने आलोक को बैठा देखकर अदिती बोली.

‘हेय, व्होट ए को-इन्सिडेन्स आलोक.’
कुछ पल के लिए आलोक भी अदिती को देखता रह गया.
आँखों में आनंदित आश्चर्य के प्रतिबिंब के साथ अदिती से हाथ मिलते हुए आलोक ने पूछा.
‘सच बोलना, आप एडमिशन की लिए आये हो या मेरा पीछा करने ?
दोनों ठहाके मार के हंसने लगे. फिर अदिती बोली.
‘जस्ट ए मिनिट. मैं आप को सच सच बता दू. पर उस के बदले आप को मेरी एक शर्त माननी पड़ेगी.’
थोड़ी देर बाद आलोक बोला,
‘मुझे मालूम है की अगर मैं आप की शर्त का पालन नहीं भी करुगा तब भी आप सच ही बोलेंगे. इसलिए मुझे आपकी शर्त मजूर है.’
चहेरे पर आश्चर्य के एक्सप्रेशन के साथ अदिती बोली. ‘ मान गये गुरु.
ह्म्म्म...शर्त सिर्फ इतनी सी है की आपको मेरे साथ कोफ़ी शेयर करनी होगी.’
‘आप शर्त जीत गई.’ आलोक बोला
‘आप कोन सी कोफ़ी पीना पसंद करेगें ?’
‘लॉन्ग ब्लेक.’ आलोक बोला.
‘ वेइट में अभी लेके आती हूँ.’ एसा बोल के अदिती काउंटर की तरफ जाने लगी तब आलोक बोला.
‘प्लीज़, आप बैठिये में ले के आता हूँ.’
‘प्लीज़ आलोक , शर्त मेरी और कोफ़ी भी मेरी.’ ऐसा बोल के अदिती कोफ़ी लेने चली गई.


आलोक ख्यालो में खो जाये उससे पहेले अदिती अलोक की पसंदीदा कोफ़ी का बड़ा सा कप टेबल पर रख के उसके सामने बैठ गई.
‘अब सच बोलू. आई थी तो मै एडमिशन लेने के लिए ही पर.. अब इरादा आपका पीछा करने का है कप्तान साब.’ अदिती बोली.
आश्चर्य से आलोक ने पूछा. ‘आप को कैसे पता चला ?’

‘फुटबोल और चेस के गोल्ड मेडालिस्ट प्लेयर, आई.टी. फेकल्टी के यूथ आइकोन,लडकियो के अक्षय कुमार मतलब आलोक देसाई. एम् आई राईट आलोक बाबू ?’
इतना सुन के आलोक की आँखे और मुह दोनों खुले के खुले ही रहे गये.
‘हेय.. हेय..हेय..आप कौन हो ?’ आलोक ने पूछा.
आलोक के चहेरे के भाव देख के अदिती जोर से हंसने के बाद बोली.
‘अरे.. अभी दो घंटे पहेले तो बताया था.. भूल गये क्या ?
अदिती मजुमदार.’

‘अरे वो इसलिए पूछ रहा हूँ की दो घंटे में मेरे बारे में इतना सब कैसे जान लिया ?’ आलोक ने पूछा.
‘अरे मैंने अभी बताया तो सही की आपका पीछा करने आई हूँ.’
अदिती ने जवाब दिया.
‘प्लीज़ अदिती, आप जो है वो सच कहिये ना.’ फिर आलोक ने पूछा.
‘ सच कहूं, मैं फेईस रीडिंग जानती हूँ.’ हलके से हँसते हुए अदिती ने कहा.
‘मैं इस बात को नहीं मानता.’ आलोक ने कहा.
फिर अदिती बोली.

‘अरे इसमें न मानने वाली कौन सी बात है. ये तो कोई भी बिलकुल आसानी से पता कर सकता है. आप के चहेरे की किताब से. मतलब आप के फेसबुक अकाउंट से. इट्स सो सिंपल. वहा ऑफिस में थोडा वक़्त मिला तो सोचा की चलो थोड़ी सी आप की फिल्म देखी जाए. और जब देखा तो आप बहोत बड़े सेलिब्रिटी निकले बोस. अब आपका ओटोग्राफ और फोटोग्राफ के लिए आपका पीछा तो करना ही पड़ेगा ना. बोलिए अब आप क्या कहे कहेंगे.?’

‘ओह माय गोड, आप तो सचमुच में जीनियस है. पर ये तो बताइए की आप को मेरी फिल्म देखने का विचार किस बात से आया ?’ आलोक ने पूछा.

जवाब देते हुए अदिती ने कहा,
‘ह्म्म्म. वो तो आप का एटीट्युड और आप की बोडी लेंग्वेज देखते ही पता चल गया था की बंदे में कुछ तो दम है.’
‘एसा कुछ नहीं है. मैं तो सब के जैसा एक सीदा सादा आम आदमी ही हूँ.’

‘वोही तो. मैं ऐसा ही केह रही हूँ. आप जिस मुकाम पर है वंहा इतना सिम्पल और सोबर रहेना काफी मुश्किल है.’
फिर घडी में देखते हुए आगे बोली.

‘सोरी आलोक, मुझे देर हो रही है, मैं आपसे जाने की अनुमति चाहूंगी.’
‘हाँ, पर एक शर्त पर.’ आलोक ने कहा.
‘ओह.. मेरी बिल्ली मुझसे म्याऊ. हाँ ठीक है. जल्दी से बोलिए.’
दोनों खड़े होके पार्किंग की और चल पड़े.
‘अब तो सच बतादो आप हो कौन ?’ आलोक ने पूछा.

अदिती ने कहा,

‘अदिती मजुमदार के परिचय के लिए ये केंटिन छोटी पड़ेगी आलोक. और मुझे भी तुमसे कुछ बातें शेयर करनी है. पर इस वक्त मेरे पास समय कम है.’
‘तो मैं आपकी बात का ये मतलब समजू की आप मेरी शर्त का भंग कर रही है ?’ आलोक ने पूछा
‘जी नहीं. कभी नहीं. पर मेंरे पास एक ऑप्शन है.’ अदिती ने कहा
‘ जी, बोलिए.’ बैचेनी से आलोक ने कहा.
‘ अगर आप के पास वक्त है तो आज रात को ९ बजे हम मिल सकते है. आप सोच लीजिये.’ अदिती ने कहा.
‘सोचने का वक्त नहीं है. इट्स डन.’ आलोक ने जवाब दिया
बाइक स्टार्ट करते हुए अदिती ने पूछा.
‘आप को मालूम है, ब्ल्यू मून रेस्टोरंट ?’
‘वो जो हाइवे पर है, वही ना ?’
‘ओ, यस. ठीक ९ बजे हम वहां मिलते है और मुझे ख़ुशी होगी अगर आप मेरे साथ डिनर करेगें तो.’ हाथ मिलाते हुए अदिती बोली.
‘ओह्ह.. इट्स ओल्सो माय ग्रेट प्लेज़र.’ आलोक ने कहा.
‘धेन ओ.के. बाय. सी यु.
फिर आलोक ने बोला.’ ‘बाय.’
अदिती के जाने क बाद आलोक ने ख़ुद से सवाल किया की ऐसी सी क्या खास बात है इस अदिती में की इतनी छोटी सी मुलाकात के बाद उसे दोबारा मिलने को मन कर रहा है ?
उनका खुबसूरत सौन्दर्य, बोल ने की अदा, वो सब तो अलोक को आम बात लगी.
फिर भी अदिती आलोक को एक पहेली जैसी लगी.

शुक्रवार. २९ अप्रैल. रात को ९:०५ बजकर ब्ल्यू मून गार्डन रेस्टोरंट के एक कोर्नर के टेबल के पास अदिती ने हाथ मिला कर आलोक का गर्मजोशी से स्वागत किया.
आलोक ने अदिती के हाथो में मेरी गोल्ड फ्लावर का बूके दिया.
कुर्सी पर बैठते हुए दोनों एक साथ बोले.

‘मेरी एक शर्त है’

फिर दोनों काफी देर तक ठहाके लगाकर हँसते रहे.


आगे ... अगले अंक में.

© विजय रावल

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